तेलुगू अभिनेता महेश बाबू की फिल्म का उनके प्रशंसक बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। हर फिल्म उनके थिएटर पर छा जाती है। आज महेश बाबू की फिल्म गुंटूर कारम सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई है। महेश बाबू की फिल्में में श्रीलीला, रम्या कृष्णन, मीनाक्षी चौधरी, जगपति बाबू, प्रकाश राज और ब्रह्मानंदम ने अहम किरदार निभाए हैं। ये फिल्मों ने रिलीज होते ही सिनेमाघरों में छा गईं। फिल्म के प्रशंसक सोशल मीडिया पर इसकी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।
गुटूर फिल्म की शुरुआत कैसे हुई
फ़िल्म ‘गुंटूर कारम की शुरुआत फ्लैशबैक से होती है। वीरा वेंकट रमन के पिता सत्यम पर हत्या का आरोप लगता है और वो जेल चले जाते हैं। उनकी माँ वसुंधरा उन्हें छोड़कर हैदराबाद में चली जाती हैं। वीरा वेंकट रमन का बचपन अपने पैतृक गाँव में बीतता है और वो बड़े होकर मिर्च के कारोबार में शामिल हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर हैदराबाद में वसुंधरा अपने पिता वेंकट स्वामी की सलाह पर राजनीति में प्रवेश करती हैं और कानून मंत्री बन जाती हैं। सत्यम अपनी सज़ा काटकर जेल से बाहर आते हैं लेकिन वो किसी से भी मिलना पसंद नहीं करते हैं। वसुंधरा का परिवार एक समझौते पर वीरा वेंकट रमन का हस्ताक्षर चाहता है जो उनकी माँ से उनके सभी संबंधों को खत्म कर देगा। इसका मकसद यही है कि वसुंधरा के दूसरी शादी से हुए बेटे को राजनीतिक विरासत मिल सके।
कौन है इस फिल्म के निर्देशक
फिल्म के निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास ने खुद ही इसकी कहानी बनाई है। लेकिन दु:खद है कि फिल्म की कहानी और पटकथा में कमजोरी थी, जिससे पूरी फिल्म का मजा खराब हो गया। मां और बेटे के बीच जो भावनात्मक दृश्य होने चाहिए थे, वे उतने प्रभावशाली नहीं थे। इसके कारण दर्शकों का इस फिल्म में भावनात्मक जुड़ाव कम था। फिल्म देखने के बाद ऐसा लगता है कि त्रिविक्रम श्रीनिवास ने कहानी का पूरा ध्यान उनके ही किरदार पर रखा, यह एक बड़ी गड़बड़ी थी। फिल्म की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, वह अपना असर खो देती है। साउथ की फिल्मों की खास बात यह है कि वे एक्शन दृश्यों पर मेहनत करती हैं, लेकिन यदि फिल्म की कथा और पटकथा पर भी उतनी ही मेहनत की जाती, तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी।
महेश बाबू ने निभाई इस फिल्म में शानदार भूमिका
इस फिल्म में, महेश बाबू ने वीरा वेंकट रमन का किरदार निभाया है। उनके एक्शन सीक्वेंसेस फिल्म में प्रशंसनीय हैं, जिन्हें उनकी स्टंट कामीयाबी का फायदा है। हालांकि, अभिनय के मामले में, हर सीन में महेश बाबू की कमी है। श्रीलीला के साथ उनकी जुगलबंदी भी पर्दे पर चमक नहीं पा रही है। श्रीलीला के लिए इस फिल्म में कुछ विशेष नहीं है।
वीरा वेंकट रमन की मां वसुंधरा के किरदार में, राम्या कृष्णन अपने अभिनय से बेहतर प्रभाव छोड़ती हैं। हालांकि, फिल्म में उनका प्रदर्शन देखकर यह लगता है कि उन्होंने अभी तक ‘बाहुबली’ की शिवगामी देवी की छवि से बाहर कदम नहीं रखा है।
फिल्म में बहुत ही अच्छे सिनेमैटिक ग्राफिक उसे किए गए हैं
वीरा वेंकट रमन” में, सत्यम के किरदार में जयराम, वेंकट स्वामी के किरदार में प्रकाश राज, मार्क्स के किरदार में जगपति बाबू, श्रीलीला के पिता पनी के किरदार में मुरली शर्मा, और मार्क्स के भाई लेनिन के किरदार में सुनील का परफॉर्मेंस प्रभावशाली रहा है। इन अभिनेता सितारों ने अपनी भूमिकाओं को बखूबी निभाया है। हालांकि, इस फिल्म में इनमें से कुछ के साथ और बेहतर काम किया जा सकता था, लेकिन लेखक-निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास की यहां भी कुछ बड़ी चूकें नजर आती हैं।
मनोज परमहंस की सिनेमैटोग्राफी बहुत सुंदर है और उन्होंने फिल्म को संतुलित दृश्यों के साथ सजाया है। फिल्म के एडिटर नवीन नूली को अनावश्यक दृश्यों को काटने के लिए पूरी आजादी थी, लेकिन उन्होंने इस मामले में भी कुछ चूकें की हैं। थमन एस द्वारा बनाए गए संगीत में ज्यादा शोर और शराब का प्रयोग हुआ है।
हम्हारी और भी खबरें पड़े हिंदी न्यूज़